हमने वेदादि शास्त्रों का मंथन करके राजनीति की एक स्वस्थ परिभाषा दी है उस पर ध्यान केंद्रित करें, उस को क्रियान्वित करने का प्रकल्प हो तो सारी विसंगतियों को हम दूर करने में समर्थ हो सकते हैं- " सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, संपन्न, सेवा परायण, स्वस्थ और सर्वहितप्रद व्यक्ति तथा समाज की संरचना ", यह राजनीति की स्वस्थ परिभाषा वेदादि शास्त्रों के आधार पर उद्घोषित है। इसको क्रियान्वित करने का प्रकल्प चलाया जाए तो कोई विसङ्गति नहीं रह सकती है। सुन लीजिए ध्यान पूर्वक - द्रोणाचार्य ब्राह्मण होकर के भी धनुर्वेद आदि में पारंगत थे या नहीं? परशुराम जी ब्राह्मण होकर के भी धनुर्वेद आदि में पारंगत थे या नहीं? विश्वामित्र जी ब्रह्मर्षि होने के बाद भी धनुर्वेद आदि में पारंगत थे या नहीं? महाभारत में लिखा है कि कोल, भील, किरात आदि जो हैं (लड़ाकू कौम), इनको रक्षा की दृष्टि से बुलंद करना चाहिए। जब देश की सुरक्षा पर कहीं से आंच आवे तो इनको भी आगे करना चाहिए। क्षत्रिय तो योद्धा भीष्मादि की तरह होते ही थे, तो मैंने एक संकेत किया। हमारे यहां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अन्त्यज सब के सब स...
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