सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

sanskrit 2022 -23

पुरी शंकराचार्य वक्तव्य

हमने वेदादि शास्त्रों का मंथन करके राजनीति की एक स्वस्थ परिभाषा दी है उस पर ध्यान केंद्रित करें,  उस को क्रियान्वित करने का प्रकल्प हो तो सारी विसंगतियों को हम दूर करने में समर्थ हो सकते हैं- " सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, संपन्न, सेवा परायण, स्वस्थ और सर्वहितप्रद व्यक्ति तथा समाज की संरचना ", यह राजनीति की स्वस्थ परिभाषा वेदादि शास्त्रों के आधार पर उद्घोषित है। इसको क्रियान्वित करने का प्रकल्प चलाया जाए तो कोई विसङ्गति नहीं रह सकती है।

सुन लीजिए ध्यान पूर्वक - द्रोणाचार्य ब्राह्मण होकर के भी धनुर्वेद आदि में पारंगत थे या नहीं? परशुराम जी ब्राह्मण होकर के भी धनुर्वेद आदि में पारंगत थे या नहीं? विश्वामित्र जी ब्रह्मर्षि होने के बाद भी धनुर्वेद आदि में पारंगत थे या नहीं? महाभारत में लिखा है कि कोल, भील, किरात आदि जो हैं (लड़ाकू कौम), इनको रक्षा की दृष्टि से बुलंद करना चाहिए। जब देश की सुरक्षा पर कहीं से आंच आवे तो इनको भी आगे करना चाहिए। क्षत्रिय तो योद्धा भीष्मादि की तरह होते ही थे,  तो मैंने एक संकेत किया। हमारे यहां ब्राह्मण, क्षत्रिय,  वैश्य, शूद्र, अन्त्यज सब के सब सैनिक होते थे। सबको सेना का प्रशिक्षण अनिवार्य होता था। महाभारत का अनुशीलन कीजिए... अगर अपने अस्तित्व और आदर्श पर आंच आ जाए तो ब्राह्मण को भी शस्त्र ग्रहण करना चाहिए। क्षत्रिय तो योद्धा होते ही हैं, वैश्यों को भी शस्त्र  ग्रहण करना चाहिए। जब हमारी ये परंपरा थी तो कहीं से आंच आने की संभावना नहीं थी। मैं एक संकेत करता हूं, प्रायः साल में दस बीस बार यह उदाहरण देता हूं… ये भुजदंड हैं - शरीर के किसी अंग या प्रत्यंग पर वार की संभावना हो तो टूटने फूटने की चिंता किए बिना अपने आप को आगे कर देते हैं। इसी प्रकार... इन में यह क्षमता कहां से आई?  परंपरा प्राप्त निसर्ग सिद्ध संस्कार सम्वेत ये भुजदंड हैं। जब क्षत्रियोचित ओज,  तेज से व्यक्ति संपन्न होते थे तो भारत की ओर (आजकल के भारत नहीं, बृहद भारत की ओर) कोई आंख उठा कर देखने में समर्थ नहीं होता था। जब दिशाहीन अहिंसा को प्रोत्साहित किया गया, वर्णाश्रम निरपेक्ष अहिंसा को प्रोत्साहित किया गया, हमारा क्षात्र बल दुर्बल होने लगा तब से भारत की परतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हो गया।

- पुरी शंकराचार्य जी द्वारा राष्ट्ररक्षा सङ्गोष्ठी में दिए गए व्याख्यान से लिया गया।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

संस्कृत धातुसंग्रह

हिन्दी संस्कृत अभ्यास करना अभि + अस् - अभ्यसति अनुकरण करना अनु + कृ - अनुकरोति अनुगमन करना अनु + गम् - अनुगच्छति अनुगमन करना अनु + चर् - अनुचरति अनुगमन करना अनु + वृत् - अनुवर्तते अनुगमन करना अनु + सृ - अनुसरति अनुग्रह करना अनु + गृह् - अनुगृह्णाति अनुमोदन करना सम् ± मन् · सम्मन्यते अस्वीकार करना अप + ज्ञा - अपजानीते अवज्ञा करना अव + ज्ञा - अवजानीते अनुनय करना अनु + नी - अनुनयति अनुभव करना अनु + भू - अनुभवति अनादर करना अव + मन् - अवमन्यते अच्छा लगना रुच् - रोचते अच्छा दिखना शुभ् - शोभते अच्छा दिखना वि + लस् - विलसति अभिनन्दन करना अभि± नन्द् · अभिनन्दति अभिलाषा करना अभि + लस् - अभिलषति अभिलाषा करना काङ्क्ष - काङ्क्षते अदृश्य होना अन्तर् + धा - अन्तर्दधाति अनुमोदन करना मण्ड् - मण्डयति आिंलगन करना श्लिष् - श्लिष्यति आिंलगन करना आ + श्लिष् - आश्लिष्यति आशा करना आ + शंस् - आशंसते आना आ + गम् - आगच्छति आना सम् + आ - समागच्छति आना आ + या - आयाति आज्ञा देना (अनुमोदन करना) अनु + मन् - अनुमन्यते आज्ञा देना आ + दिश् - आदिशति आक्रमण करना अभि + द्रु - अभिद्रोग्धि आराधना करना आ + राध् - आराधयति आनन्...

संस्कृत में वृक्षों के नाम

हिन्दी संस्कृत अंकोट अज्रेट: (पुँ.) अनार दाडिम: (पुँ.) अमलतास कृतमाल:/आरग्वध: (पुँ.) अमरूद का वृक्ष पेरुक: (वृक्ष:) (पुँ.) अर्जुन का वृक्ष अर्जुन:/वीरतरु: (पुँ.) अशोक अशोक:/वञ्जुल: (पुँ.) आक अर्क:, मन्दार: (पुँ.) आम सहकार:, आम्रवृक्ष:, रसाल:, आम्र: (पुँ.) आबनूस तमाल: (पुँ.) आँवला आमलकी/धात्री/अमृता (स्त्री.) इमली अम्लिका (स्त्री.) ईख इक्षु:, रसाल: (पुँ.) एरण्ड एरण्ड:/उरुबक: (पुँ.) केशर केशर:, बकुल: (पुँ.) कोपल किसलयम् (नपुं.) कचनार कोविदार:/चमरिक: (पुँ.) कटहल पनस: (पुँ.) कदम्ब नीप:/कदम्ब: (पुँ.) करील करीर:(पुँ.) करौंदा करमर्द:/सुषेण: (पुँ.) वैंâथ कपित्थ:/दधित्थ: (पुँ.) खस उशीर: (पुँ.) खजूर खर्जू: (पुँ.)/खर्जूरम् (नपुं.) खैर खदिर:/दन्तधावन: (पुँ.) गिलोय गुडूची/जीवन्तिका (स्त्री.) गूगल गुग्गुल: (पुँ.) गूलर उदुम्बर:/यज्ञाङ्ग: (पुँ.) चंदन चन्दनम्, मलयम् (नपुं.) चिरचिटा अपामार्ग: (पुँ.) चीड़ भ्रददारु: (पुँ.) छाल वल्कलम् (नपुं.) छितवन शरद:, सप्तपर्ण: (पुँ.) जड़ मूलम् (नपुं.) जामुन जम्बू: (स्त्री.) ढाक पलाश:/िंकशुक: (पुँ.) ताड़ ताल: (पुँ.) देवदारवृक्ष देवदारु:/पीतदारु: (पुँ.)/द्रुकिलिमम् (नपुं.)...

संस्कृत में औषधियों के नाम

हिन्दी संस्कृत अकरकरा आकारकरभ:/अकल्लक: (पुँ.) अगर अगरु: (पुँ.)/जोङ्गकम् (नपुं.) अजमोद अजमोदा/खराश्वा (स्त्री.) अजवायिन यवानी/यवनिका (स्त्री.) अतीस अतिविषा/कश्मीरा (स्त्री.) अदरक आर्द्रकम्/शृङ्गवेरम् (नपुं.) अफीम अहिफेन:,निफेन: (पुँ.) अभरक अभ्रकम् (नपुं.) अर्क आसव:, रस: (पुँ.) असगन्ध अश्वगन्धा/वलदा/ कुष्ठघातिनी (स्त्री.) आँवला आमलकम्/धात्रीफलम् (नपुं.), अमृता (स्त्री.) ईसबगोल ईषगोलम्/स्निग्धबीजम् (नपुं.) कस्तूरी कस्तूरी (स्त्री.), कस्तुरि:, गन्धधूलि: (स्त्री.) काढ़ा क्वाथ:, कषाय: (पुँ.) क्लोरोफॉर्म मूर्च्छाकरी कालाजीरा अरण्यजीर:/क्षुद्रपत्र: (पुँ.) कुटकी कम्पी/कडम्बरा (स्त्री.) कुलञ्जन कुलञ्ज:/गन्धमूल: (पुँ.) केसर केसरम्/कुज्र्ुमम् (नपुं.) खश उशीरम्, नलदलम्, वीरणमूलम् (नपुं.) खस खस-खस्खस:, खसतिल: (पुँ.) गिलोय गुडूची/अमृता (स्त्री.) गुलाब जल जपाजलम् (नपुं.) गोली वटी, गोलिका (स्त्री.) घाव भरना व्रणरोपनम् (नपुं.) चन्दन चन्दनम्/श्रीखण्डम् (नपुं.) चिकित्सा रोगप्रतीकार: (पुँ.), वैद्यकम्, भेषजम् (नपुं.) चित्रक चित्रक: (पुँ.) चिरायता तृणनिम्ब:/निद्रारि: (पुँ.) चीड़ दारुगन्धा/चीडा (स्त्री.) छोटी इ...