सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

sanskrit 2022 -23

तुलसी विवाहऔर महत्व

तुलसी भारतीय संस्कृति की परिचायिका हैं। भगवान विष्णु की प्रिया होने के कारण सर्वत्र तुलसी की पूजा होती है। तुलसी विवाह और महत्व से सभी अवगत हैं। तुलसी विवाह हिन्दू पूरे हर्ष के साथ मनाते हैं।तुलसी विवाह उत्सव कार्तिकशुक्ल एकादशी को मनाया जाता है।
इसी दिन देवउत्थान एकादशी मनायी जाती है।देवउत्थान एकादशी को देवउठनी, देवप्रबोधनी तथा पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।तुलसी विवाह पूर्णतया एक मांगलिक उत्सव है।मान्यता है कि
आषाढ़ मास के हरिशयनी एकादशी को विष्णु  शयन हेतु चले जाते हैं।फिर कार्तिकशुक्ल एकादशी को जगते हैं।इस समयावधि में गृहप्रवेश, विवाह,उपनयन,मुंडन आदि कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता। तुलसी विवाह के बाद सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। चूँकि तुलसी विष्णु की प्राणप्रिया हैं अतः जगने के पश्चात तुलसीपूजन,  तुलसी स्तुति तथा तुलसी विवाह के माध्यम से श्री विष्णु को भक्त अपने घर बुलाते है। तुलसी विवाह में वर शालिग्राम(विष्णु का प्रतीक,गण्डकी नदी में मिलनेवाला विशेष पत्थर) तथा कन्या तुलसी होती हैं।यह विवाह ठीक उसी तरह और उतनी ही धूमधाम से होता है जैसे आप अपने संततियों की करते हैं।
तुलसी विवाह विधि-
सर्वप्रथम तुलसी चबूतरे को साफ कर लिया जाता है। मण्डप निर्माण कर तुलसीजी के ऊपर लाल कपड़ा चढ़ा दें। चबूतरे के चारों ओर साड़ी लपेट दें। फिर सभी सृंगार की वस्तुओं को चढ़ा दें। ॐ तुलस्यै नमः इस मंत्र द्वारा सभी उपचारों(धूप,दीप, नैवेद्य,पुष्प आदि) को शालिग्राम तथा तुलसी के लिए अर्पित करें।पुनः यजमान हाथ में शालिग्राम जी को लेकर पत्नी के साथ तुलसी मैया की सात बार परिक्रमा करें। इसके बाद श्री हरि और लक्ष्मी स्वरूप तुलसी मैया की आरती कर प्रसाद ग्रहण करें।
इस प्रकार तुलसी विवाह पूर्ण होता है।
तुलसी विवाह करने के लाभ- (1) तुलसी विवाह से विवाह की अड़चने समाप्त हो जाती हैं।विवाह का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।(2) दाम्पत्य जीवन  सुखमय हो जाता है।(3)व्याधियों का नाश होता है।(4)पाप सन्ताप मिट जाते हैं।
तुलसी विवाह की कथा- यह कथा शिवपुराण के पंचम खंड में अध्याय 13 से 41 तक पूरे विस्तार से दी गई है। संक्षेप में यह कथा इस प्रकार है।

प्राचीन काल में दानवराज दम्भ ने पुत्र प्राप्ति के लिए विष्णु की तपस्या की। विष्णु के वरदान से शंखचूड़(जलन्धर) का जन्म हुआ।वह बल पराक्रम में पिता से भी बढ़कर था। शंखचूड़ पूर्व जन्म में सुदामा नामक गोप था और भगवान विष्णु का सखा होने के कारण विष्णु का प्रिय भी था।शाप के कारण राक्षस कुल में जन्म हुआ। शंखचूड़ ने जैगीषव्य मुनि की सलाह से ब्रह्मा जी की तपस्या की।ब्रह्मा जी के प्रसन्न होने पर शंखचूड़ ने अजेय होने का वरदान प्राप्त किया।
ब्रह्मा जी की आज्ञा से शंखचूड़ ने धर्मध्वज की अति रूपवती कन्या तुलसी से विवाह किया। देवी तुलसी पतिव्रता थी और सदैव शंखचूड़ के अनुकूल व्यवहार करती थी।
भगवान विष्णु को तुलसी का शाप
ब्रह्मा जी से अजेयता का वरदान प्राप्त होने के कारण शंखचूड़ ने अभिमानवश देवताओं से बैर मोल लिया।देवताओं के सारे अधिकार छीन लिए। देवताओं के आग्रह से भगवान शंकर ने शंखचूड़ से युद्ध किया परन्तु पतिव्रता तुलसी के प्रभाव से शंखचूड़ का अंत नहीं हो पा रहा था।
तब विष्णु द्वारा तुलसी का छलपूर्वक सतीत्व भंग किया गया। युद्ध में शंकर के त्रिशूल से शंखचूड़ का वध हुआ।तुलसी को समझते देर नहीं लगी विष्णु ने उसके साथ छल किया है जिसके परिणामस्वरूप शंखचूड़ का वध हुआ है। तुलसी ने कुपित हो विष्णु से कहा "हे विष्णु तुम पत्थर के जैसे कठोर और दयरहित हो अतः तुम मेरे शाप से पत्थर हो जाओ"।
शालिग्राम
इस प्रकार शाप के परिणाम से विष्णु पत्थर हो गए जिसे शालिग्राम शिला कहते हैं।तुलसी ने वह शरीर त्यागकर भगवान शंकर की प्रेरणा से लक्ष्मी के समान पद को प्राप्त की शालिग्राम शिला के साथ पूजित हुईं। तुलसी के बिना विष्णुजी की पूजा सफल नहीं होती है। तुलसी के  द्वारा त्यागा हुआ शरीर गंडकी नदी में परिणित हो गया।उस नदी में मिलनेवाली शिलाओ(पत्थरों)को शालिग्राम कहते हैं। जो शिलाएँ जल गिरी होती है वही शुभ होती है।किनारे पर स्थित शिलाओं को शालिग्राम नहीं माना जाता है।
तुलसी विवाह कथा के सामाजिक संदेश
यह उत्सव बड़े गम्भीर दर्शन को बताता है(1) कई लोग तुलसी सतीत्व भंग के कारण विष्णु को गलत उपमा देते हैं जो उचित नहीं है क्योंकि आपके द्वारा किये जानेवाले कार्य से देव् कार्य में, ईश्वरीय विधान में बाधा आती है तो उसका चाहे जैसे हो निदान करना पड़ता है।यह अधर्म नहीं है।इसके कई उदाहरण हैं जैसे- श्रीराम द्वारा बाली वध, हनुमानजी द्वारा मेघनाद के यज्ञ का तथा शंकर द्वारा दक्ष प्रजापति का यज्ञ विध्वंश। (2) स्त्रियों के लिये पतिव्रत ही सबसे बड़ा धर्म है।
(3) तुलसी वृक्षों की अधिष्ठात्री देवी मानी गई है।
यह औषधिय वनस्पति ही नहीं विष्णुप्रिया होने के कारण हम सबकी माता भी हैं। जिनका हिन्दू संस्कृति से गहरा नाता है। परंतु कभी आँगन में पूजित होने वाली तुलसी मैया को नई पीढ़ी ने घर से निकाल फेंका है ।यह हमारी संस्कृति के लिए चिंता की बात है।
पाठक बन्धु आपके द्वारा दिये गए सलाह हमारी ऊर्जा को बढ़ाते हैं।यह पोस्ट कैसा लगा जरूर बताएँ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

संस्कृत धातुसंग्रह

हिन्दी संस्कृत अभ्यास करना अभि + अस् - अभ्यसति अनुकरण करना अनु + कृ - अनुकरोति अनुगमन करना अनु + गम् - अनुगच्छति अनुगमन करना अनु + चर् - अनुचरति अनुगमन करना अनु + वृत् - अनुवर्तते अनुगमन करना अनु + सृ - अनुसरति अनुग्रह करना अनु + गृह् - अनुगृह्णाति अनुमोदन करना सम् ± मन् · सम्मन्यते अस्वीकार करना अप + ज्ञा - अपजानीते अवज्ञा करना अव + ज्ञा - अवजानीते अनुनय करना अनु + नी - अनुनयति अनुभव करना अनु + भू - अनुभवति अनादर करना अव + मन् - अवमन्यते अच्छा लगना रुच् - रोचते अच्छा दिखना शुभ् - शोभते अच्छा दिखना वि + लस् - विलसति अभिनन्दन करना अभि± नन्द् · अभिनन्दति अभिलाषा करना अभि + लस् - अभिलषति अभिलाषा करना काङ्क्ष - काङ्क्षते अदृश्य होना अन्तर् + धा - अन्तर्दधाति अनुमोदन करना मण्ड् - मण्डयति आिंलगन करना श्लिष् - श्लिष्यति आिंलगन करना आ + श्लिष् - आश्लिष्यति आशा करना आ + शंस् - आशंसते आना आ + गम् - आगच्छति आना सम् + आ - समागच्छति आना आ + या - आयाति आज्ञा देना (अनुमोदन करना) अनु + मन् - अनुमन्यते आज्ञा देना आ + दिश् - आदिशति आक्रमण करना अभि + द्रु - अभिद्रोग्धि आराधना करना आ + राध् - आराधयति आनन्...

संस्कृत में वृक्षों के नाम

हिन्दी संस्कृत अंकोट अज्रेट: (पुँ.) अनार दाडिम: (पुँ.) अमलतास कृतमाल:/आरग्वध: (पुँ.) अमरूद का वृक्ष पेरुक: (वृक्ष:) (पुँ.) अर्जुन का वृक्ष अर्जुन:/वीरतरु: (पुँ.) अशोक अशोक:/वञ्जुल: (पुँ.) आक अर्क:, मन्दार: (पुँ.) आम सहकार:, आम्रवृक्ष:, रसाल:, आम्र: (पुँ.) आबनूस तमाल: (पुँ.) आँवला आमलकी/धात्री/अमृता (स्त्री.) इमली अम्लिका (स्त्री.) ईख इक्षु:, रसाल: (पुँ.) एरण्ड एरण्ड:/उरुबक: (पुँ.) केशर केशर:, बकुल: (पुँ.) कोपल किसलयम् (नपुं.) कचनार कोविदार:/चमरिक: (पुँ.) कटहल पनस: (पुँ.) कदम्ब नीप:/कदम्ब: (पुँ.) करील करीर:(पुँ.) करौंदा करमर्द:/सुषेण: (पुँ.) वैंâथ कपित्थ:/दधित्थ: (पुँ.) खस उशीर: (पुँ.) खजूर खर्जू: (पुँ.)/खर्जूरम् (नपुं.) खैर खदिर:/दन्तधावन: (पुँ.) गिलोय गुडूची/जीवन्तिका (स्त्री.) गूगल गुग्गुल: (पुँ.) गूलर उदुम्बर:/यज्ञाङ्ग: (पुँ.) चंदन चन्दनम्, मलयम् (नपुं.) चिरचिटा अपामार्ग: (पुँ.) चीड़ भ्रददारु: (पुँ.) छाल वल्कलम् (नपुं.) छितवन शरद:, सप्तपर्ण: (पुँ.) जड़ मूलम् (नपुं.) जामुन जम्बू: (स्त्री.) ढाक पलाश:/िंकशुक: (पुँ.) ताड़ ताल: (पुँ.) देवदारवृक्ष देवदारु:/पीतदारु: (पुँ.)/द्रुकिलिमम् (नपुं.)...

संस्कृत में औषधियों के नाम

हिन्दी संस्कृत अकरकरा आकारकरभ:/अकल्लक: (पुँ.) अगर अगरु: (पुँ.)/जोङ्गकम् (नपुं.) अजमोद अजमोदा/खराश्वा (स्त्री.) अजवायिन यवानी/यवनिका (स्त्री.) अतीस अतिविषा/कश्मीरा (स्त्री.) अदरक आर्द्रकम्/शृङ्गवेरम् (नपुं.) अफीम अहिफेन:,निफेन: (पुँ.) अभरक अभ्रकम् (नपुं.) अर्क आसव:, रस: (पुँ.) असगन्ध अश्वगन्धा/वलदा/ कुष्ठघातिनी (स्त्री.) आँवला आमलकम्/धात्रीफलम् (नपुं.), अमृता (स्त्री.) ईसबगोल ईषगोलम्/स्निग्धबीजम् (नपुं.) कस्तूरी कस्तूरी (स्त्री.), कस्तुरि:, गन्धधूलि: (स्त्री.) काढ़ा क्वाथ:, कषाय: (पुँ.) क्लोरोफॉर्म मूर्च्छाकरी कालाजीरा अरण्यजीर:/क्षुद्रपत्र: (पुँ.) कुटकी कम्पी/कडम्बरा (स्त्री.) कुलञ्जन कुलञ्ज:/गन्धमूल: (पुँ.) केसर केसरम्/कुज्र्ुमम् (नपुं.) खश उशीरम्, नलदलम्, वीरणमूलम् (नपुं.) खस खस-खस्खस:, खसतिल: (पुँ.) गिलोय गुडूची/अमृता (स्त्री.) गुलाब जल जपाजलम् (नपुं.) गोली वटी, गोलिका (स्त्री.) घाव भरना व्रणरोपनम् (नपुं.) चन्दन चन्दनम्/श्रीखण्डम् (नपुं.) चिकित्सा रोगप्रतीकार: (पुँ.), वैद्यकम्, भेषजम् (नपुं.) चित्रक चित्रक: (पुँ.) चिरायता तृणनिम्ब:/निद्रारि: (पुँ.) चीड़ दारुगन्धा/चीडा (स्त्री.) छोटी इ...