धार्मिक
धनतेरस को धनत्रयोदशी या धन्वन्तरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है।इस पर्व से ही दीपावली की विधिवत शुरुआत हो जाती है। सभी हिन्दूजन इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं।
तो आइए इस पर्व की विशेषताओं को जानने का प्रयास करते हैं।
यह पर्व हिन्दू माह के अनुसार कार्तिक के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी(तेरस) तिथि को मनाया जाता है।
धनतेरस पर्व का इतिहास--- यद्यपि धनतेरस का इतिहास बहुत व्यापक है परंतु यहाँ संक्षेप में वर्णन कर रहा हूँ।
विष्णु पुराण की घटना है, एक बार दुर्वासा मुनि विष्णुलोक से आ रहे थे। रास्ते में देवराज इंद्र मिले जो अपने प्रिय ऐरावत पर आसीन थे। त्रिलोकाधिपति जानकर इंद्र को दुर्वासाजी ने भगवान के प्रसाद की माला दी परन्तु अभिमानवश इंद्र ने वह माला ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया।ऐरावत ने माला को सूँड़ में लेकर पैरों से कुचल डाला। श्री हरि के प्रसाद का यह अपमान देख, क्रोधित स्वभाव के दुर्वासाजी ने अविलम्ब तीनों लोकों सहित शीघ्र ही श्रीहीन(लक्ष्मी विहीन) होने का शाप दे दिया।
आगे का इतिहास भागवत पुराण में इस प्रकार है-
दुर्वासा के शाप से जब तीनों लोक और देवता श्रीहीन हो गए तब दानवों का अत्याचार बढ़ गया, धर्म-कर्मों का लोप हो गया।तब देवता, दानवों के अत्यचार से मुक्ति हेतु श्रीपति विष्णु के शरण मे गए। श्रीविष्णु की सलाह से देवताओं ने दानवों के साथ,अमरता और ऐश्वर्य की प्राप्ति हेतु समुद्रमंथन किया।
समुद्रमंथन के परिणामस्वरूप तीनों लोकों को ऐश्वर्य का वर देनेवाली भगवती लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ फिर सभी प्राणियों को अमरता आरोग्यता तथा पुष्टि प्रदान करने हेतु, कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को ,अमृत कलश लिए धन्वन्तरि का प्राकट्य हुआ। तब से सभी हिन्दू आरोग्यता और उत्तम स्वास्थ्य के लिए धनतेरस का पर्व अपार श्रद्धा के साथ मनाते हैं।
धन्वन्तरि- धन्वन्तरि आरोग्य प्रदाता हैं द।यह आयुर्वेद के प्रणेता भी हैं। आज पूरा विश्व आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति से लाभान्वित हो रहा है।अतः सभी को धन्वन्तरि का ऋणी होना चाहिए। धनतेरस को ही आयुर्वेद विज्ञान दिवस मनाया जाता है। इनकी धन्वन्तरि-संहिता आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है। आयुर्वेद के प्रथम अचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वन्तरि से ही इस शास्त्र का विधिवत ज्ञान प्राप्त किया। बाद में इस आचार्य परम्परा में और लोग भी जुड़े जिनमें चरक तथा कौमारभृत्य का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। चरक द्वारा चरकसंहिता तथा सुश्रुत द्वारा सुश्रुतसंहिता आयुर्वेद की लोकोपकारी ग्रंथ माने गए हैं।अतः धनत्रयोदशी पर हम इन आचार्यों के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
धन्वंतरि का स्वरूप- भागवतपुराण के आठवेंस्कन्ध के आठवें अध्याय में भगवान धन्वंतरि के परम अलौकिक स्वरूप का बड़ा ही सुंदर वर्णन मिलता है।
भगवान धन्वंतरि के शरीर का रंग साँवला, गले में माला,प्रत्येक अंग आभूषणों से सुसज्जित, घुंघराले बाल, युवा अवस्था, सिंह के समान पराक्रम अर्थात भगवान धन्वंतरि अनुपम छवि के प्रदाता होने के साथ अनुपम छवि के धनी भी हैं।
अमृतपूर्णकलशं बिभ्रद वलय भूषितः।
स वै भगवतः साक्षात विष्णोरंशांशसम्भवः।।
भगवान साक्षात विष्णु के अंश थे,जिनके सोने के कंगन से सुशोभित हाथों में अमृत कलश था।
धनतेरस से जुड़ी लोकमान्यताएँ- इस दिन सभी अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार वस्तुओं की खरीदारी करते हैं। लोग ऐसा मानते हैं कि इस दिन खरीदी गई वस्तुओं में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। धनतेरस के दिन बाज़ारों में खूब चहल पहल रहती है। अमृतकलश के साथ भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य हुआ था इसीलिये लोग वर्तनों की खरीदारी भी खूब करते हैं।
अकाल मृत्यु से बचने के लिए भी इस पर्व को मनाया जाता है।इस दिन(कहीं कहीं चतुर्दशी तिथि को) दक्षिण दिशा के अधिपति और मृत्यु के देवता यमराज के लिये दक्षिण दिशा में दीप जलाकर रखा जाता है।
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