यद्यपि चित्रगुप्त हुन्दू समाज के प्रमुख देवताओं में से एक हैं, तथापि कायस्थ जाति के लोग इनकी पूजा बहुत श्रद्धा से करते हैं। तो मित्रों आइए जानते हैं, जीवों के शुभाशुभ कर्मों के लेखक,श्री चित्रगुप्त देवता के बारे में-
प्राकट्य- चित्रगुप्त के प्राकट्य की कथा इस प्रकार है -पितामह ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना कर परमतत्व के ध्यान में लीन थे ।जैसे ही उनका ध्यान भंग हुआ, ब्रह्माजी ने देखा कि उन्हीं की काया(शरीर) से उत्पन्न एक विचित्र वर्ण का पुरुष ,हाथ में लेखनी और मसिपात्र(दवात) लिए उनको प्रणाम कर रहा है। यही चित्रगुप्त थे।
चित्रगुप्त ने ब्रह्मा जी से अपने स्थान और कार्य के लिए निर्देश करने का आग्रह किया,तब ब्रह्मा जी ने कहा ' मेरी काया से उत्पन्न होने से तुम कायस्थ हुए। तुम्हारा नाम तुम्हारे वर्ण के अनुरुप चित्रगुप्त हुआ। जीवों के शुभ-अशुभ कर्मों का अंकन करने हेतु तुम यमपुरी में निवास करो। तब से श्री चित्रगुप्त यमपुरी में निवास करते हुए मनुष्य ही नहीं सभी प्राणियों के कर्मों का लेखा -जोखा रखते हैं। तथा उस आधार पर जीव अपने कर्मो का फल पाता है।
चित्रगुप्तजी का परिवार-- भट्ट ,श्रीवास्तव्य ,गौड़,माथुर ,नागर, अहिष्ठाण, सेनक, शकसेन और अम्बष्ठ ,चित्रगुप्त के इन नौ पुत्रों का उदाहरण मिलता है। इन्हीं पुत्रों से विश्व में कायस्थ जाति की अभिवृद्धि हुई।पद्म पुराण के आधार पर चित्रगुप्त की दो पत्नियों के नाम मिलते हैं- नन्दिनी तथा ऐरावती।
पूजा कब और कैसे करे ?चित्रगुप्त पूजा कार्तिकशुक्ल द्वितीया को की जाती है। इस दिन सर्वप्रथम मन ,कर्म वाणी से शुद्ध होकर परिवार के सभी सदस्य चित्रगुप्त तथा यमदेवता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।वहाँ लेखनी ,मसिपात्र, बहीखाते,तुलादि भी रखें। प्रसाद तथा तथा पूजा की वस्तुओं को एकत्र कर लें। फिर सभी सदस्य प्रथमपूज्य गणेश का पूजन करें ,कलश की स्थापना करें।फिर चन्दन रोली हल्दी कुमकुम आदि से मसि (स्याहि)बनाकर कागज़ पर स्वस्तिक बना लें। फिर परिवार के सभी सदस्य पाँच देवताओं के नाम लिखे जैसे ॐ श्री गणेशाय नमः, ॐ धर्मराजाय नमः,ॐ चित्रगुप्ताय नमः,ॐ यमाय नमः, ॐ कुबेराय नमः। (कुछ लोग वंशवृक्ष भी लिखते है,आय-व्यय तथा अपनी अपेक्षाओं को भी कागज़ पर लिखकर लोग भगवान चित्रगुप्त से मंगल की कामना करते हैं।) इसके बाद चित्रगुप्त भगवान को धूप ,दीप, नैवेद्य, वस्त्र, दधि, मधु, चन्दन,अक्षत, पुष्पमाल आदि सामग्रियों से पूजन करें। प्रदक्षिणा करें।फिर भगवान चित्रगुप्त की आरती करें। आशीर्वाद ग्रहण करें।
चित्रगुप्त पूजा क्या सन्देश देती है ?
ईश्वर की सृष्टि में असंख्य जीव हैं। जो विविध प्रकृति(nature) और प्रवृति(habit) के है। गरुड़ पुराण के अनुसार जीव के भिन्न -भिन्न योनियों में किये गए कर्मो के अनुसार ही स्वर्ग ,नर्क,या वैकुंठ की प्राप्ति होती है।चित्रगुप्त सबका जीवनवृत अपने पास रखते हैं।अतः यह आवश्यक है कि सबको इस बात की जानकारी बनी रहे कि उनका जीवनवृत्त चित्रगुप्त के पास संरक्षित हो रहा है।ईश्वरीय विधान से इतर जाने पर यमलोक में प्रतिकूल परिणाम भोगने पड़ेंगे।अतः जीव स्वेच्छाचारी होने से बचे तथा ईश्वरीय विधान के अनुसार जीवन व्यतीत करे, चित्रगुप्त पूजा हमें यही संदेश देती है।
दूसरा पहलू यह है कि -चित्रगुप्त ब्रह्मा की काया से प्रकट हुए अतः ब्रह्मबल(mental power) के समर्थक हैं। कलम दवात भी मानसिक और बौद्धिक शक्ति का परिचायक है।यह सर्वविदित है कि बौद्धिक शक्ति के आभाव में समाज रसातल में चला जाता है। ब्रह्मबल द्वारा ही क्षात्रबल(mussels power) को नियंत्रित किया जाता है।अतः समाज को अपनी अभिवृद्धि के लिए कलम -दवात का आश्रय लेना चाहिए।
चित्रगुप्त पूजा के दिन का सामाजिक महत्व - कार्तिकशुक्ल द्वितीया तिथि को कई पर्व मनाये जाते हैं जैसे- यम द्वितीया, भैयादूज, गोवर्धनपूजा, अन्नकूट,चित्रगुप्त पूजन आदि। प्रत्येक पर्व के साथ उसके पावन इतिहास और सन्देश जुड़े हैं। इस दिन चित्रगुप्त पूजन के साथ पूरे भारत में भैयादूज और गोवर्धन पूजा की भी धूम रहती है।
कायस्थ जाति-- मेरे आदर्श ,स्वामी विवेकानंद भी कायस्थ जाति के थे जिनके कारण भारत विश्व में आज भी गौरवान्वित महसूस करता है। बौद्धिक समृद्धि ही इस जाति का मूल उधेश्य रहा और आज भी ऐसा ही देखने को मिलता है। कालांतर में कायस्थों ने क्षात्रधर्म का भी बखूबी निर्वहन किया और आधे से अधिक भारत पर शासन भी किया।इसके कई उदाहरण इतिहास में मिलते हैं जैसे- गुजरात में वल्लभी,काबुल और पंजाब में जयपाल,कश्मीर में दुर्लभ वर्धन,दक्षिण भारत में चालुक्य,उत्तर भारत में देवपाल गौड़, मध्य भारत में सातवाहन और परिहार ये सभी कायस्थ राजवंश ही थे। कायस्थ जाति ने कई लेखक, कवि ,वैज्ञानिक तथा धर्मप्रचारक इस देश को दिए हैं।स्वामीविवेकानंद के अनुसार सनातन संस्कृति को बचाये रखना ही इनके जीवन का मूल उद्देश्य है।
इति मन्त्र पुष्पांजलि-
यमराजय धर्मराजाय चित्रगुप्ताय वै नमः
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