गोहत्या और हिन्दू संस्कृति यह शीर्षक ही लज्जा का बोध कराता है। यह स्वतन्त्र भारत का सबसे बड़ा कलंक है। इतिहास साक्षी है जब तक भारत भूमि बर्बर विदेशीयों के अधीन रही तब भी हम गोहत्या के विरुद्ध अपने प्राणों की आहूति देते रहे। आज हिन्दू बहुल भारत में ही हिंदुओं की पूज्या गोमाता,तथाकथित धर्म-निरपेक्ष शासन के द्वारा काटी जा रहीं हैं। इसके लिये शासन विधर्मी कसाईयों को अनुमति भी देता है।
हिन्दू संस्कृति में गोमाता
गोमाता के विना हिन्दू संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती।यह तो फिर वैसे ही होगा जैसे कोई जड़ काटकर पेड़ से फल की आशा करे। गोमाता हिन्दू संस्कृति की मूल है। गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरितमानस में कहा है-
विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार
अर्थात गोमाता के लिए ईश्वर को भी अवतार लेना पड़ा। गोमाता धर्म,अर्थ,काम ,मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करती है । वेदों में मनुष्य के लिए यज्ञों काअनुष्ठान बताया गया है। उस यज्ञ की आहूति जिसे अग्नि के माध्यम से देवता ग्रहण करते हैं, गोमाता के द्वारा ही प्राप्त होता है।
गोमाता के द्वारा प्राप्त होनेवाले (दूध,दही,घी, मूत्र,गोबर) पदार्थो के आभाव में हिन्दुओं का कोई भी कार्य नहीं हो सकता। पंचगव्य तथा पंचामृत के बिना हिन्दू कोई भी कर्मकांड नहीं कर सकता है।
गोवत्स-- कृषि प्रधान रही भारतभूमि, गोसंतति के द्वारा ही अन्न से पूर्ण हो शस्य-श्यामला कहलाती है। गोमाता तथा गोवंश से प्राप्त होनेवाले उत्पादों द्वारा मनुष्य ही नहीं अपितु पशुओं का भी कल्याण होता है।
ऐसी गोमाता की हत्या!देवभूमि भारत के लिए इससे बड़ा कलंक क्या हो सकता है।
गोमाता और कृष्ण
नमो ब्रह्मण्यदेवाय गो ब्राह्मण हिताय च ।
जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः ।।
गोप,गोपी,गोविंद, गोपाल,ग्वाल,गोवर्धन,गोपिवल्लभ,गोकुल ये सब निष्प्राण हैं, गोमाता के बिना। गोकुलेश कृष्ण अधूरे हैं गोमाता के नहीं रहने पर। गोमाता बिना क्या मथुरा क्या गोकुल तथा कैसी गोपियाँ। कौन से भागवतपुराण की चर्चा जन-मन में कृष्णभक्ति की ज्योत जलाएगी। गोमाता के बिना द्वापरयुग के नायक योगिराज कृष्ण का अस्तित्व ही मिट जाएगा ।इस प्रकार हमारे हिन्दू संस्कृति की पहचान भी मिट जाएगी। कृष्ण ने श्रीमद्भगवतगीता में स्वयं कहा है-- धेनूनाम अस्मि कामधुक ।अर्थात जो कृष्ण स्वयं को गौ मानते हैं उनकी लीलाभूमि पर गौ हत्या !
गोमाता का स्वभाव- जब हमें किसी सीधे-सादे,भोले-भाले,निश्छल,निष्कपट,तथा दयालु प्रकृति के व्यक्ति का उदाहरण देना होता है तो उसे 'गौ' की उपमा दी जाती है।गोमाता स्वभाव से सीधी,सरल और भोली होती है।यह उदार ,अहिंसक तथा सहिष्णु होती है। हिन्दू संस्कृति को गोमाता के स्वभाव से समझा जा सकता है।
गोमाता का आध्यात्मिक महत्व--
गोमाता भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का प्रधान साधन है। परंतु गोमाता से हिंदुओं का आध्यात्मिक जुड़ाव अत्यंत गहरा होने के कारण किसी भी स्थिति में गौ वध योग्य नहीं है। गोमाता का वर्णन पौराणिक और वैदिक दोनों साहित्यों में मिलता है।
वेदों में गोमाता -
माता रुद्राणां दुहिता वसुनां स्वासादित्यानाममृतस्य।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय
मा गामनागामदितिं वधिष्ट।। (ऋग्वेद)
इस ऋचा में गोमाता को किसी प्रकार क्षति नहीं पहुँचाने की बात की गई है।
अथर्ववेद के दो सूक्त तो पूरी तरह से गोमाता के लिए ह समर्पित हैं- चौथे कांड का गोसूक्त तथा तीसरे कांड का गोष्ठसूक्त।
पुराणों में गोमाता-
गोभिसतुल्यं न पश्यामि धनं किंचिदिहाच्युत।। कीर्तनम श्रवणम दानम दर्शनम चापि पार्थिव।
गवां प्रशस्यते वीर सर्वपापहरं शिवम।।(महाभारत, अनुशासन पर्व)
गोमाता के दर्शन,श्रवण,गुणों की चर्चा की चर्चा का वर्णन करते हुए ऋषि च्वयन कहतें है कि ये परम् कल्याणकारिणी हैं।
गावो ही यज्ञस्य फलं(महाभारत)-गोमाता ही सभी यज्ञों के फलों का कारण हैं।
त्वम माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम।
त्वं तीर्थं सर्वतीर्थानाम नमस्तेस्तु सदानघे।।
(स्कन्दपुराण)
यहाँ गोमाता तीर्थरूपा, यज्ञरूपा तथा देवमाता
बताकर उन्हें नमस्कार किया गया है।
मित्रों वेदों और पुराणों में सर्वत्र गोमाता की स्तुतियाँ भरी पड़ी हैं। जिनका वर्णन करते हुए हर हिन्दू थकता नहीं है।क्या वह गोमाता वध के योग्य है ? हिन्दू तो सपने में भी गोदर्शन कर लेता है तो पूण्य का भागी बन जाता है। गोमाता में सभी देवताओं का वास होता है। गोसेवा से आर्थिक संपन्नता आती है।
राजा दिलीप और गोसेवा-
गोमाता द्वारा सन्तान सुख की प्राप्ति होती है।राजा दिलीप ने गोमाता की सेवा द्वारा सन्तान सुख की प्राप्ति की।गोमाता के लिए अपना शरीर तक अर्पण करने को उद्दत हुए।इसका बहुत सुंदर वर्णन कालिदास ने रघुवंशम में किया है।
दुर्भाग्य ! दिलीप के देश में सार्वजनिक रूप से गोहत्या के उदाहरण मिलने लगे हैं।
प्राचीन काल में ब्रह्मचारी विद्या अध्ययन के साथ गोसेवा भी करते थे। इस प्रकार गोसेवा के साथ स्वस्थ्य और गोपालन में दक्षता भी सीखते थे।
गोहत्या के कारण- (1) गोमाता को सामान्य पशु मनना। यह हमारी सबसे भयंकर भूलों मेसे एक है क्योंकि गोमाता का हिन्दू संस्कृति में स्थान पशुवत नहीं मातृवत है।माता किसी भी परिस्थिति में वध्या नहीं हो सकती।
(2) सरकार द्वारा सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता का तर्क देकर बहुसंख्यक हिन्दू समाज की उपेक्षा करना।
(3) हिन्दू समाज द्वारा गोपालन से मुख मोड़ना
(4) गोमाता के नाम पर क्षुद्र राजनीति
(5) हिन्दू समाज द्वारा गोमहत्व का विस्मरण
(6) गोमाता के नाम पर आवश्यकता से अधिक सहिष्णुता
(7) पशुचिकित्सक,पशुचिकित्सालय तथा गोचरभूमि की कमी
गोहत्या रोकने के उपाय- (1) बहुसंख्यक हिन्दू समाज की आस्था तथा गोमाता के आर्थिक सामाजिक महत्व को देखते हुए कठोर कानून बनाया जाय।
(2) वृद्ध व बीमार गौमाताओं के लिए चिकित्सकीय सुविधाएँ प्रदान किया जाय।
(3) गोमाता को राष्ट्रीय पशु का दर्जा
(4)गोपालन तथा गोउत्पादों को बढ़ावा दिया जाय।
(5) गोमाता के आध्यात्मिक और भौतिक महत्व बताने हेतु जनजागरूकता अभियान चलाया जाय।
(6) गौशाला का निर्माण
(7) कृषि में यंत्रों के स्थान पर गोवंश तथा जैविक खाद को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
मित्रों जिस गोमाता के आभाव में हिन्दू मृत्यु के उपरांत मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकते, वैतरणी नहीं पार कर सकते। गोदान किये बिना यज्ञों का फल नहीं प्राप्त हो सकता । विष्णु क्षीरसागर में नहीं सोकते। भारतीयों की दरिद्रता दूर नहीं हो सकती। वैसी गोमाता की हत्या वो भी उसी का दुग्धपान कर प्राप्त हुए बल से,देवभूमि भारत कलंक के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
(गो: रक्षति रक्षितः)
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