भारतीय संस्कृति में सर्वत्र प्रणाम करने की महिमा बताई गई है। वेदों ,पुराणों,उपनिषदों तथा अन्य धर्म शास्त्रों में प्रणाम और उसके महत्व का विशद वर्णन भरा पड़ा है।प्रणाम या अभिवादन के अभाव में हमारी संस्कृति निष्प्राण हो जाएगी। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि नई पीढ़ी- प्रणाम क्यों और कैसे ? इस प्रश्न का उत्तर जाने। तो आइए जानते हैं प्रणाम क्यों और कैसे किया जाता है।
प्रणाम शब्द की व्युत्पत्ति-
प्रणाम शब्द के कई पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग किया जाता है। सबसे पहले प्रणाम शब्द की व्युत्पत्ति पर ध्यान से विचार करें- प्रणाम शब्द संस्कृत के नम धातु में प्र उपसर्ग जोड़ने से बनता है।जिसका शाब्दिक अर्थ होता है विनीत होकर झुकना।
प्रणाम शब्द के पर्यायवाची-
नम धातु से ही नमस्कार,नमस्ते,नमामि,नमाम्यहम,नमो नमः,प्रणमामि आदि शब्द बनते हैं। ये सभी शब्द अभिवादन के लिए प्रयोग किये जाते हैं। इन शब्दों के अर्थ और भाव एक ही है। किसी के समक्ष अभिमान रहित हो पूरी श्रद्धा के साथ झुकना। इसके अतिरिक्त भारतीय संस्कृति में साष्टांग दण्डवत प्रणाम की भी परम्परा है। जिसमे व्यक्ति भूमि पर लेटकर पूज्य जनों से आशीर्वाद ग्रहण करता है।
प्रणाम का महत्व--
श्रीमद्भागवत गीता में प्रणाम के महत्व को बहुत ही उत्तम ढँग से बताया गया है यथा-
अभवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुः विद्या यशो बलं।।
प्रतिदिन अपने से बड़ों का अभिवादन करने से मनुष्य में चार गुणों की वृद्धि होती है। प्रणाम करने से आयु,विद्या,यश,और बल की प्राप्ति होती है। आपकी आयु का सीधा सम्बन्ध आपकी अभिमान रहित जीवन शैली से है और यदि आप सदैव बड़ों को प्रणाम कर आशीर्वाद लेतें हैं तो स्वभाविक रूप से अभिमान कोसों दूर रहेगा। क्योंकि अभिमानी व्यक्ति कभी नहीं झुकता।कहा गया है- नमन्ति फलिनो वृक्षा,नमन्ति गुणिनो जनाः ।
शुष्क वृक्षाश्च मूर्खाश्च न नमन्ति कदाचन।।
अभिमानी ,मूर्ख,और सूखे वृक्ष नहीं झुकते।प्रणाम करने से मनुष्य अभिमान रहित हो कई प्रकार की चिंताओं से मुक्त होकर लंबी आयु पाता है। प्रणाम करने से व्यक्ति का स्वभाव निरन्तर निर्मल होता जाता है जिससे वह विद्या और स्थाई रूप से प्रसिद्धि पाता है। समाज में किसी अभिवादन करने वाले व्यक्ति को संस्कारी माना जाता है।व्यवहार में भी आप अगर किसी का अभिवादन करते हैं तो सामनेवाले व्यक्ति का क्रोध शांत हो जाता है ,आपके प्रति उसकी धारणा बदल जाती है।
प्रणाम करने का सम्बंध हमारी शारीरिक मुद्राओं के साथ मन से भी जुड़ा होता है।श्रद्धा के बिना प्रणाम स्वीकार नहीं होता। आप चरण स्पर्श करें या किसी को नमस्कार करें, मन में सामनेवाले के प्रति आदर रखना आवश्यक होता है।
प्रणाम किसको करें तथा क्यों- मनुष्य अपने जीवन में प्रकृति,समाज,माता पिता तथा गुरुजनों से बहुत कुछ सीखता है,पाता है। इन सभी से अनंत कामनाओं की पूर्ति चाहता है अतः ये सभी प्रणम्य हैं। प्रणाम आपकी कृतज्ञता और समर्पण को दर्शाता है। जब आप किसी के लिए खड़े होते हैं, नमस्ते कहते हैं या घुटने,कमर ,हाथ तथा सीने के बल लेटकर साष्टांग करते हैं, तब आप समर्पण और आदर के भाव से भर जाते हैं। बुराइयाँ स्वतः आपसे दूर होने लगतीं हैं। आप प्रसन्नता और ऊर्जा से भर जाते हैं।
शास्त्रों में प्रणाम - वैदिक तथा पौराणिक दोनों साहित्य नमः ,नमस्तस्यै, नमामि,नमस्कार, नमस्ते, नमाम्यहम,वन्दे, नमो नमः,प्रणमाम्यहम
जैसेअभिवादन सूचक शब्दों से भरे पड़े है। कर्मकांडों में प्रत्येक स्थान पर गणेशाय नमः,भगवत्यै नमः, वरुणाय नमः,सूर्याय नमः जैसे वाक्यों का उच्चारण होता है। मनुष्य प्रणाम के माध्यम से ईश्वर के प्रति अपना आभार तथा समर्पण के भाव को प्रदर्शित करता है । प्रणाम करने से प्रेम,सौहार्द्र तथा बंधुत्व जैसे गुणों की वृद्धि होती है।
प्रणाम कैसे करें- साष्टांग प्रणाम अभिवादन की सबसे उत्तम पद्धति है। पेट के बल भूमिपर दोनों हाथ आगे फैलाकर लेटना साष्टांग प्रणाम कहलाता है।इस प्रणाम में शरीर के आठ अंग(मस्तक,भौंह,नाक,छाती,जंघे,घुटने,हाथ की तलहथी तथा पैर की उँगलियों का ऊपरी भाग) भूमि का स्पर्श करते हैं। यथासुविधा देवता,आचार्य,साधु तथा ऐसे समतुल्य जनों को साष्टांग प्रणाम ही करें।दोनों हाथों को जोड़कर मस्तक झुकाना भी प्रणाम होता है। दोनों हाथों से चरण छूकर चरण स्पर्श किया जाता है। ध्यान रहे बिना दोनों हाथ जोड़े प्रणाम नहीं होता है।एक हाथ से,मस्तक हिलाकर या जरा सा मस्तक हिला देना प्रणाम नहीं कहलाता।यह प्रणाम का भारतीय तरीका नहीं है।
प्रणाम कब नहीं करना चाहिए- अशुद्ध होने पर प्रणाम करने से बचना चाहिए। श्मशान में या श्मशान जाते समय,अस्वस्थ होने पर,आवेशित या क्रोध की अवस्था में, दातुन करते समय,सवारी करते समय ऐसी अवस्था में प्रणाम नहीं करना चाहिए।देव् मन्दिर में ,देवता के समक्ष या पूजा करने के समय भी प्रणाम न करें। ऐसी अवस्थाओं में विशेष हो तो मानसिक प्रणाम करें।
आज की पारिवारिक तथा सामाजिक परिदृश्य को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि वर्तमान पीढ़ी अभिवादन के महत्व को समझे। आज बेटे बेटियों को अपने माता पिता के पॉँव छूने में संकोच होते देखा जा रहा है। बहुत से लोग तो चरण स्पर्श के तरीके को भूल गए हैं। दोनों हाथ की जगह एक हाथ से और चरण के स्थान पर घुटने छूते हैं।माता-पिता को ये संस्कार बच्चे में डालने होंगे। विद्यालयों को इसकी शिक्षा देनी चाहिए। उचित ज्ञान के अभाव में वर्तमान पीढ़ी अभवादन रूपी संस्कार को भूलती जा रही है। संस्कृति संरक्षण का यह उत्तरदायित्व हम सबका है।
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