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sanskrit 2022 -23

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9th trm2 hin 2023

वर्ग नवम  वार्षिक परीक्षा 2022-23 विषय हिंदी  पूर्णांक 80 इस प्रश्न पत्र में 4 खंड हैंl सभी खंड अनिवार्य हैंl परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में उत्तर लिखेंl (खंड- क)  I. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिएl 1x5=5 विद्यार्थी जीवन को मानव जीवन की रीढ़ की हड्डी कहें, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। विद्यार्थी काल में बालक में जो संस्कार पड़ जाते हैं, जीवन भर वही संस्कार अमिट रहते हैं। इसीलिए यही काल आधारशिला कहा गया है। यदि यह नींव दृढ़ बन जाती है तो जीवन सुदृढ़ और सुखी बन जाता है। यदि इस काल में बालक कष्ट सहन कर लेता है तो उसका स्वास्थ्य सुंदर बनता है। यदि मन लगाकर अध्ययन कर लेता है तो उसे ज्ञान मिलता है, उसका मानसिक विकास होता है। जिस वृक्ष को प्रारंभ से सुंदर सिंचन और खाद मिल जाती है, वह पुष्पित एवं पल्लवित होकर संसार को सौरभ देने लगता है। इसी प्रकार विद्यार्थी काल में जो बालक श्रम, अनुशासन, समय एवं नियमन के साँचे में ढल जाता है, वह आदर्श विद्यार्थी बनकर सभ्य नागरिक बन जाता है। सभ्य नागरिक के लिए जिन-जिन गुणों की आवश्यकता है, उन गुणों के...

पुरी शंकराचार्य वक्तव्य

हमने वेदादि शास्त्रों का मंथन करके राजनीति की एक स्वस्थ परिभाषा दी है उस पर ध्यान केंद्रित करें,  उस को क्रियान्वित करने का प्रकल्प हो तो सारी विसंगतियों को हम दूर करने में समर्थ हो सकते हैं- " सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, संपन्न, सेवा परायण, स्वस्थ और सर्वहितप्रद व्यक्ति तथा समाज की संरचना ", यह राजनीति की स्वस्थ परिभाषा वेदादि शास्त्रों के आधार पर उद्घोषित है। इसको क्रियान्वित करने का प्रकल्प चलाया जाए तो कोई विसङ्गति नहीं रह सकती है। सुन लीजिए ध्यान पूर्वक - द्रोणाचार्य ब्राह्मण होकर के भी धनुर्वेद आदि में पारंगत थे या नहीं? परशुराम जी ब्राह्मण होकर के भी धनुर्वेद आदि में पारंगत थे या नहीं? विश्वामित्र जी ब्रह्मर्षि होने के बाद भी धनुर्वेद आदि में पारंगत थे या नहीं? महाभारत में लिखा है कि कोल, भील, किरात आदि जो हैं (लड़ाकू कौम), इनको रक्षा की दृष्टि से बुलंद करना चाहिए। जब देश की सुरक्षा पर कहीं से आंच आवे तो इनको भी आगे करना चाहिए। क्षत्रिय तो योद्धा भीष्मादि की तरह होते ही थे,  तो मैंने एक संकेत किया। हमारे यहां ब्राह्मण, क्षत्रिय,  वैश्य, शूद्र, अन्त्यज सब के सब स...

होलिकोत्सव

भारतीय समाज और होली होली भारतीय जनमानस की चतुर्दिक खुशहाली और वैभव  को दर्शाती है, क्योंकि अस्वस्थ और विपन्न समाज रंगोत्सव नहीं मना सकताl विश्व के कई देश जहां केवल सर्दी अथवा केवल गर्मी झेलते रहते हैं वहीं भारत छह ऋतु का आनंद लेता हैl ऋतुराज बसंत की मादक प्रकृति में 'वासंती सस्य येष्टि'( होलिका दहन में नए अनाज से हवन करना) हम अनादि काल से करते आ रहे हैंl होली द्वेष भाव से रहित क्षमता से युक्त शोषण विनिर्मुक्त, स्वस्थ समाज का उदाहरण प्रस्तुत करती हैl होली सिद्धांतों की रक्षा करते हुए आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त कर हर्ष प्रकट करने का उत्सव हैl भारतीय समाज ने हिरण्याक्ष, हिरण्यकशिपु, शुंभ, निशुंभ, चंड, मुंड, महिषासुर ,वृत्रासुर ,रावण, दुर्योधन जैसी अनेकानेक आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त किया हैl यदि उपरोक्त असुरों के अत्याचार और उनकी शक्तियों की तुलना वर्तमान के जाहिल जिहादी आतंकवादियों तथा आतंकवादी संगठन जैसे आईएसआईएस बोको हराम अल कायदा आदि से की जाए तो उनके सामर्थ्य के सामने यह आसुरी शक्तियां फिसड्डी साबित होती हैंl वर्तमान की आसुरी शक्तियों को यह भ्रम है कि भारत में गजवा ...

पतंजलि एक भारतीय वैज्ञानिक

ओशो कहते हैं- पतंजलि अत्‍यंत विरल व्‍यक्‍ति है। वे प्रबुद्ध है बुद्ध,कृष्‍ण और जीसस की भांति, महावीर, मोहम्‍मद और जयथुस्‍त्र की भांति। लेकिन एक ढंग से अलग है। बुद्ध, महावीर,मोहम्‍मद,—इसमें से किसी का दृष्‍टिकोण वैज्ञानिक नहीं है। वे महान धर्म प्रवर्तक है, उन्‍होंने मानव मन और उसकी सरंचना को बिलकुल बदी दिया, लेकिन उनकी पहुंच वैज्ञानिक नहीं है। पंतजलि बुद्ध—पुरूषों की दुनियां के आइंस्‍टीन है। वे अद्भुत है वे सरलता से आइंस्टीन, बोर, मैक्स प्लांक या हेसनबर्ग की तरह नोबल पुरस्कार विजेता हो सकते थे। उनकी अभिवृत्ति और दृष्टि वही है जो किसी परिशुद्ध वैज्ञानिक मन की होती है। कृष्ण कवि हैं; पतंजलि कवि नहीं है। पतंजलि नैतिकवादी भी नहीं है, जैसे महावीर है। पतंजलि बुनियादी तौर पर एक वैज्ञानिक हैं, जो नियमों की भाषा में ही सोचते—विचारते है। उन्होंने मनुष्य के अंतस जगत के निरपेक्ष नियमों का निगमन करके सत्य और मानवीय मानस की चरम कार्य—प्रणाली के विस्तार का अन्वेषण और प्रतिपादन किया। यदि तुम पतंजलि का अनुगमन करो तो तुम पाओगे कि वे गणित के फार्मूले जैसी ही सटीक बात कहते हैं। तुम वैसा करो जैसा वे कहते है...

संस्कृत में औषधियों के नाम

हिन्दी संस्कृत अकरकरा आकारकरभ:/अकल्लक: (पुँ.) अगर अगरु: (पुँ.)/जोङ्गकम् (नपुं.) अजमोद अजमोदा/खराश्वा (स्त्री.) अजवायिन यवानी/यवनिका (स्त्री.) अतीस अतिविषा/कश्मीरा (स्त्री.) अदरक आर्द्रकम्/शृङ्गवेरम् (नपुं.) अफीम अहिफेन:,निफेन: (पुँ.) अभरक अभ्रकम् (नपुं.) अर्क आसव:, रस: (पुँ.) असगन्ध अश्वगन्धा/वलदा/ कुष्ठघातिनी (स्त्री.) आँवला आमलकम्/धात्रीफलम् (नपुं.), अमृता (स्त्री.) ईसबगोल ईषगोलम्/स्निग्धबीजम् (नपुं.) कस्तूरी कस्तूरी (स्त्री.), कस्तुरि:, गन्धधूलि: (स्त्री.) काढ़ा क्वाथ:, कषाय: (पुँ.) क्लोरोफॉर्म मूर्च्छाकरी कालाजीरा अरण्यजीर:/क्षुद्रपत्र: (पुँ.) कुटकी कम्पी/कडम्बरा (स्त्री.) कुलञ्जन कुलञ्ज:/गन्धमूल: (पुँ.) केसर केसरम्/कुज्र्ुमम् (नपुं.) खश उशीरम्, नलदलम्, वीरणमूलम् (नपुं.) खस खस-खस्खस:, खसतिल: (पुँ.) गिलोय गुडूची/अमृता (स्त्री.) गुलाब जल जपाजलम् (नपुं.) गोली वटी, गोलिका (स्त्री.) घाव भरना व्रणरोपनम् (नपुं.) चन्दन चन्दनम्/श्रीखण्डम् (नपुं.) चिकित्सा रोगप्रतीकार: (पुँ.), वैद्यकम्, भेषजम् (नपुं.) चित्रक चित्रक: (पुँ.) चिरायता तृणनिम्ब:/निद्रारि: (पुँ.) चीड़ दारुगन्धा/चीडा (स्त्री.) छोटी इ...

संस्कृत में वृक्षों के नाम

हिन्दी संस्कृत अंकोट अज्रेट: (पुँ.) अनार दाडिम: (पुँ.) अमलतास कृतमाल:/आरग्वध: (पुँ.) अमरूद का वृक्ष पेरुक: (वृक्ष:) (पुँ.) अर्जुन का वृक्ष अर्जुन:/वीरतरु: (पुँ.) अशोक अशोक:/वञ्जुल: (पुँ.) आक अर्क:, मन्दार: (पुँ.) आम सहकार:, आम्रवृक्ष:, रसाल:, आम्र: (पुँ.) आबनूस तमाल: (पुँ.) आँवला आमलकी/धात्री/अमृता (स्त्री.) इमली अम्लिका (स्त्री.) ईख इक्षु:, रसाल: (पुँ.) एरण्ड एरण्ड:/उरुबक: (पुँ.) केशर केशर:, बकुल: (पुँ.) कोपल किसलयम् (नपुं.) कचनार कोविदार:/चमरिक: (पुँ.) कटहल पनस: (पुँ.) कदम्ब नीप:/कदम्ब: (पुँ.) करील करीर:(पुँ.) करौंदा करमर्द:/सुषेण: (पुँ.) वैंâथ कपित्थ:/दधित्थ: (पुँ.) खस उशीर: (पुँ.) खजूर खर्जू: (पुँ.)/खर्जूरम् (नपुं.) खैर खदिर:/दन्तधावन: (पुँ.) गिलोय गुडूची/जीवन्तिका (स्त्री.) गूगल गुग्गुल: (पुँ.) गूलर उदुम्बर:/यज्ञाङ्ग: (पुँ.) चंदन चन्दनम्, मलयम् (नपुं.) चिरचिटा अपामार्ग: (पुँ.) चीड़ भ्रददारु: (पुँ.) छाल वल्कलम् (नपुं.) छितवन शरद:, सप्तपर्ण: (पुँ.) जड़ मूलम् (नपुं.) जामुन जम्बू: (स्त्री.) ढाक पलाश:/िंकशुक: (पुँ.) ताड़ ताल: (पुँ.) देवदारवृक्ष देवदारु:/पीतदारु: (पुँ.)/द्रुकिलिमम् (नपुं.)...

संस्कृत में सब्जियों के नाम

हिन्दी संस्कृत अरुई आलुकी (स्त्री.) आलू आलुकम् (नपुं.) अदरख आर्द्रकम् (नपुं.) कटहल पनसम् (नपुं.) कद्दू तुम्बीफलम्, काशीफलम्, कूष्माण्डम् (नपुं.) कमरख कर्मरङ्गम् (नपुं.) करैला कटिल्ल: (पुँ.), कारवेल्लम्, कटिल्लम् (नपुं.) कुम्हड़ा कुष्माण्डम् (नपुं.), पीतफला (स्त्री.) कुन्दरु कुन्दरु:, बुद्धिनाशक: (पुँ.) गोभी गोजिह्वा (स्त्री.) घिया काशीफलम् (नपुं.) छेवड़ा महाकोशातकी (स्त्री.) चुकन्दर कन्दभेद: (पुँ.), चुकन्दरी (स्त्री.) चौराई अल्पमारिष:, मेघनाद:, तण्डुलीय: (पुँ.) टमाटर रक्ताङ्ग: (पुँ.)/वार्तकी (स्त्री.) टिण्डा टिण्डिश:, रोमशफल: (पुँ.) डंठल वृन्तम् (नपुं.) तरोई (तोरई) कोशातकी, जालिनी (स्त्री.) धनिया वितुन्नकम् (नपुं.) परवल पटोल: (पुँ.)/पटोलकम्/कुलकम् (नपुं.) पालक पालक्या, पालकी (स्त्री.) पोई पोतकी (स्त्री.) प्याज पलाण्डु:, सुकन्दक: (पुँ.) पुदीना अजगन्ध:, पुदिन:, व्यञ्जन: (पुँ.) पत्तागोभी हरितगोभी, पत्रगोभी, मुकुलगोभी (स्त्री.) फूलगोभी पुष्पशाकम् (नपुं.), गोजिह्वा (स्त्री.) बण्डा पिण्डालु:, शङ्खालु: (पुँ.) बैंगन (भाटा) वृन्ताकम् (नपुं.), भण्टाकी (स्त्री.) बथुआ वास्तुकम् (नपुं.) भिण्डी रामकोश...

संस्कृत में फूलों के नाम

हिन्दी संस्कृत अज्रुर प्रवाल: (पुँ.) अधखिली कली कुड्मल: (पुँ.) अशोक अशोक: (पुँ.) कमल कमलम्/पज्र्जम्/कुवलयम् (नपुं.) कचनार काञ्चनार:/कोविदार: (पुँ.) कली कोरका/कलिका (स्त्री.)/कुड्मलम् (नपुं.) कनेर कर्णिकार:/करवीर:/शतप्रास: (पुँ.) कुई कल्हारम् (नपुं.) कुन्दपुष्प कुन्द:/कुन्दम् (नपुं.) कुमुदिनी कुमुद्वती (स्त्री.) केवड़ा केतकी (स्त्री.), केतकम्, (नपुं.) कोपल किसलय: (पुँ.)/किसलयम् (नपुं.) गमला द्रोणपुष्पम् (नपुं.), गोमला (स्त्री.) गुड़हल जपापुष्पम् (नपुं.) गुलदस्ता स्तबक: (पुँ.) गुलमेंहदी प्रावृट्पुष्पम् (नपुं.) गुलाब पाटल: (वि.)/स्थलपद्मम् (नपुं.)/शतपत्री/पुष्पराज: (पुँ.) गेंदा गन्धपुष्पम् (नपुं.) चम्पा चाम्पेय:/नागकेसर:/चम्पक: (पुँ.)/हेमपुष्पम् (नपुं.) चमेली मालतीपुष्पम् (नपुं.), सुमना (स्त्री.) छुई मुई-लज्जालु: (पुँ.) जपाकुसुम जपापुष्पम् (नपुं.) जूही हेमपुष्पिका/यूथिका (स्त्री.)/पुष्पगन्धा (पु.) टेसू शिरीषपुष्पम् (नपुं.) दुपहरिया बन्धूक: (पुँ.) नरगिस नरगिशा (पुँ.) नीलकमल नीलकमलम्/इन्दीवरम् (नपुं.) नेवारी नवमालिका (स्त्री.) पद्मसमूह नलिनी (स्त्री.) पत्ती पत्रकम्, पर्णकम् (नपुं.) पराग पराग:...

संस्कृत धातुसंग्रह

हिन्दी संस्कृत अभ्यास करना अभि + अस् - अभ्यसति अनुकरण करना अनु + कृ - अनुकरोति अनुगमन करना अनु + गम् - अनुगच्छति अनुगमन करना अनु + चर् - अनुचरति अनुगमन करना अनु + वृत् - अनुवर्तते अनुगमन करना अनु + सृ - अनुसरति अनुग्रह करना अनु + गृह् - अनुगृह्णाति अनुमोदन करना सम् ± मन् · सम्मन्यते अस्वीकार करना अप + ज्ञा - अपजानीते अवज्ञा करना अव + ज्ञा - अवजानीते अनुनय करना अनु + नी - अनुनयति अनुभव करना अनु + भू - अनुभवति अनादर करना अव + मन् - अवमन्यते अच्छा लगना रुच् - रोचते अच्छा दिखना शुभ् - शोभते अच्छा दिखना वि + लस् - विलसति अभिनन्दन करना अभि± नन्द् · अभिनन्दति अभिलाषा करना अभि + लस् - अभिलषति अभिलाषा करना काङ्क्ष - काङ्क्षते अदृश्य होना अन्तर् + धा - अन्तर्दधाति अनुमोदन करना मण्ड् - मण्डयति आिंलगन करना श्लिष् - श्लिष्यति आिंलगन करना आ + श्लिष् - आश्लिष्यति आशा करना आ + शंस् - आशंसते आना आ + गम् - आगच्छति आना सम् + आ - समागच्छति आना आ + या - आयाति आज्ञा देना (अनुमोदन करना) अनु + मन् - अनुमन्यते आज्ञा देना आ + दिश् - आदिशति आक्रमण करना अभि + द्रु - अभिद्रोग्धि आराधना करना आ + राध् - आराधयति आनन्...